नई दिल्ली, 28 अगस्त (आईएएनएस)। जब जैवलिन की बात आती है तो भारत में सबकी नजरें नीरज चोपड़ा पर ठहर जाती हैं। लेकिन भारतीय महिला जैवलिन थ्रोअर अन्नू रानी एक ऐसी एथलीट हैं जिन्होंने देश का नाम रोशन करने की यात्रा में जीवन की बहुत विपरीत स्थितियों का सामना किया। साधारण से परिवार में जन्मी इस लड़की के पास न तो वह पारिवारिक माहौल था और न ही खेल को बढ़ावा देने के लिए संसाधन। मैदान के नाम पर खेत थे और जैवलिन के नाम पर बांस या गन्ना ही होता था। इन संघर्षों से गुजरकर जैवलिन में मुकाम हासिल करने वाली अन्नू रानी 28 अगस्त को अपना 32वां जन्मदिन मना रही हैं।
अन्नू रानी का जन्म 1992 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के एक छोटे से गांव बहादुरपुर में हुआ था। अन्नू रानी का बचपन बेहद साधारण था। वह एक किसान परिवार से आती हैं। गांव का माहौल ऐसा था कि लड़कियों का टी शर्ट और लोअर पहनना भी बड़ा गलत माना जाता था। 20-21 साल की उम्र में लड़कियों की शादी करा दी जाती थी। अंजू ने एक इंटरव्यू में बताया भी था, “कहीं न कहीं लड़की को एक बोझ की तरह माना जाता था।”
इन बंदिशों और भेदभाव ने अन्नू के मन-मस्तिष्क पर गहरा असर छोड़ा था। खेल उनका पहला प्यार नहीं था। अन्नू किसी तरह घर से, उस माहौल से निकलना चाहती थीं। लड़कियों के लिए बंदिशों से भरे जीवन को नहीं जीना चाहती थीं। ऐसे में खेल के रूप में उनको एक बड़ा सहारा नजर आया। अन्नू को खेल में भी जैवलिन सबसे आसान लगा। खेत में कहीं बांस मिला तो उससे जैवलिन प्रैक्टिस शुरू कर दी। वर्ना गन्ने को ही जैवलिन बना लिया और अभ्यास शुरू कर दिया। इस तरह उन्होंने अपने स्कूल में जैवलिन में हिस्सा लेना शुरू कर दिया।
हालांकि जब यह बात पिता को पता चली तो बड़ी दिक्कत आई। किसी तरह से पिता को अन्नू के गुरु ने समझाया तो वह मान गए। सबको यही लगा था कि बेटी का कुछ दिन का शौंक है जो उतर जाएगा। लेकिन अन्नू की गंभीरता देख पिता ने आखिरकार बेटी का साथ देने का फैसला किया। वह दिन निकलने से पहले ही अन्नू को साइकिल या स्कूटर पर प्रैक्टिस कराने जाते और गांव के लोगों के उठने से पहले घर वापस आ जाते। इस तरह से दकियानूसी माहौल में अन्नू की शुरुआती ट्रेनिंग हुई।
लेकिन जब उनके टैलेंट की चर्चा होने लगी, तो धीरे-धीरे उनकी मदद के लिए लोग आगे आने लगे। अन्नू की मेहनत रंग लाई और उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। हर बार उन्होंने अपने प्रदर्शन को और बेहतर किया और जल्द ही वह भारतीय एथलेटिक्स में एक चर्चित नाम बन गईं।
अन्नू रानी ने जल्दी ही जूनियर स्तर पर सफ0लता हासिल कर ली। उनके प्रदर्शन ने 2010 राष्ट्रमंडल खेलों के कांस्य पदक विजेता से कोच बने कशिनाथ नायक का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने अन्नू को ट्रेनिंग दी।
अन्नू 2019 में दोहा में आयोजित विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप में महिला भाला फेंक के फाइनल में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय बनी। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग के आधार पर 2020 के टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया था।
अन्नू रानी के करियर का ऐतिहासिक मौका 2022 के एशियन गेम्स में आया जहां उन्होंने अपने सीजन के सर्वश्रेष्ठ थ्रो के साथ इतिहास रच दिया। इसके साथ ही उन्होंने एशियाई खेलों के फाइनल में स्वर्ण पदक जीता। वह ऐसा करने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट साबित हुईं। अनु ने 62.92 मीटर का थ्रो किया था। इसके अलावा अन्नू ने बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स के फाइनल में भी कांस्य पदक जीता था।
अन्नू की इन महान उपलब्धियों ने उनके पिता की सोच को बदलकर रख दिया है। वह घर में सबसे छोटी हैं। उनके दो भाई और बहन हैं। एथलीट बनने के बाद परिवार चलाने में अन्नू का योगदान सर्वाधिक रहा है। इस बात से घरवालों को भी खुशी है कि उनकी बेटी ने न केवल देश का नाम रोशन किया बल्कि उस घर का खर्चा चलाने में सबसे ज्यादा योगदान दिया जिसके आसपास का माहौल कभी यह मानता था कि बेटी एक बोझ होती है।
–आईएएनएस
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