रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक को एक और झटका लगा है। उपभोक्ता आयोग ने सुपरेटक के एमडी मोहित अरोरा को तीन साल की कैद की सजा सुनाई है। अरोरा के खिलाफ गिरफ्तारी का वांरट जारी हो चुका है। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने घर के खरीदार को समय पर कब्जा नहीं देने के एक मामले में सख्त कदम उठाते हुए खरीदार की रकम रिफंड नहीं करने के लिए सुपरटेक के प्रबंध निदेशक (एमडी) मोहित अरोरा को तीन साल कैद की सजा सुनाई है। एमडी के खिलाफ गिराफ्तारी का वारंट भी जारी हो चुका है।
एक करोड़ रुपये लिए पर आठ साल में भी कब्जा नहीं
आयोग ने यह आदेश सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर कंवल बत्रा और उनकी बेटी रूही बत्रा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुनाया। आयोग के पीठासीन सदस्य सी. विश्वनाथ और जस्टिस राम सूरत राम मौर्य ने पिछले दिनों दिए फैसले में कहा, हम जानते हैं कि आप (सुपरटेक) खरीदार की रकम का कैसे भुगतान करेंगे। आपको बता दें कि रिटायर ब्रिगेडियर कंवल बत्रा और उनकी बेटी रूही बत्रा ने सुपरटेक के अपकंट्री प्रोजेक्ट में संयुक्त रूप से एक विला खरीदा था। सुपरटेक की ओर से दिसंबर 2013 में करीब 1.03 करोड़ रुपये की इस विला का ऑफर दिया गया था। बिल्डर ने विला का कब्जा अगस्त 2014 में देने का वादा किया था। हालांकि, प्रोजेक्ट के लिए उचित मंजूरी नहीं होने के कारण सुपरटेक इस विला का कब्जा नहीं दे सका। इसके बाद आयोग ने 2019 में सुपरटेक को ब्याज के साथ पैसा वापस करने का निर्देश दिया था लेकिन सुपरटेक ने ब्याज के साथ रकम वापस करने के आयोग के 2019 के फैसले का पालन भी नहीं किया। इसी के बाद आयोग ने यह नया आदेश जारी किया है।
आदेश का पालन करो या जेल जाओ
आयोग ने कहा कि निर्देश का पालन न करने और अपनी प्रतिबद्धता का अनादर करने को ध्यान में रखकर हम कंपनी के एमडी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,1986 की धारा-27 के तहत तीन साल कैद की सजा सुनाते हैं। साथ ही उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी करते हैं। यदि सुपरटेक एक सप्ताह के भीतर इस आयोग के समक्ष रकम जमा कर देता है तो वारंट को लागू नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट दे चुका है दो टावर गिराने के निर्देश
राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के फैसले से पहले पिछले सुपरटेक को सुप्रीम कोर्ट ने भी बड़ा झटका दिया था। 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में सुपरटेक की एमराल्ड कोर्ट परियोजना के दो 40-मंजिला आवासीय टावरों को गिराने का आदेश दिया था। उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक को इमारत के मानदंडों का गंभीर उल्लंघन का दोषी माना था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि बिल्डर व नोएडा विकास प्राधिकरण की मिलीभगत से उन टावरों का अवैध निर्माण हुआ था। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा है कि टावर गिराने में आने वाले खर्च की वसूली भी कंपनी से हो और निवासियों को भी किसी तरह की परेशानी नहीं होनी चाहिए।