इस लोकसभा चुनाव में कई तरह की चर्चाएं हो रही है। लेकिन छत्तीसगढ़ में इन चर्चाओं के अलावा एक खास व्यक्ति विशेष चर्चाओं के केंद्र बिंदु में है वह हैं बृजमोहन अग्रवाल। आठ बार से विधायक ब्रजमोहन अग्रवाल को जनता ने पांच लाख से अधिक वोट से जीत का आशीर्वाद देकर उन्हें रायपुर से संसद भेजा है। वह पिछले 35 सालों से एक जनप्रतिनिधि के रूप में जनता की सेवा में डटे हुए हैं।
पटवा सरकार में सबसे कम उम्र के बने थे मंत्री
1990 में महज 30 साल की उम्र में अविभाजित मध्य प्रदेश की सुंदरलाल पटवा सरकार में मंत्री स्वतंत्र प्रभार की भूमिका से लेकर अब तक छत्तीसगढ़ की राजनीतिक क्षितिज में विराजित होने के साथ ही लोगों के हृदय में भी वे बसे हुए है। इस बार लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह जी ने विशेष रूप से उन्हें रायपुर लोकसभा से भाजपा का टिकट दिया। परंतु यहां पर उनकी जीत की चर्चाएं नहीं बल्कि चर्चाएं यह रहीं कि बृजमोहन अग्रवाल कीर्तिमान रचेंगे या नहीं। रायपुर लोकसभा में बृजमोहन अग्रवाल को देश में सबसे ज्यादा वोटो से जिताने का संकल्प लेती स्वयं जनता दिख रही थी। जनता इस विश्वास को बहुत हद तक पूरा किया और वह पांच लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीत गए।
दलगत राजनीति से ऊपर छवि का फायदा
बृजमोहन अग्रवाल की पृष्ठभूमि आरएसएस की है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की छात्र राजनीति से राजनीति की शुरुआत हुई। उसके बाद भारतीय जनता युवा मोर्चा यानी भाजपा से जुड़कर जनता के बीच कार्य किया। परंतु अपने इस सफर में बृजमोहन अग्रवाल ने सिर्फ मुद्दों की राजनीति की और जनहित को सर्वोपरि रखा। यहां पर सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने राजनीति के चक्कर में किसी से व्यक्तिगत लड़ाई नहीं लड़ी। मुद्दों पर कांग्रेस के खिलाफ वे सबसे ज्यादा मुखर रहे और आज भी रहते हैं। परंतु व्यक्तिगत संबंधों की बात हो तो बृजमोहन अग्रवाल से अच्छा दोस्त किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को कभी नहीं मिल सकता है। आपको पता ही है कि बृजमोहन अग्रवाल ने 1989 से लेकर अब तक लगातार आठ विधानसभा चुनाव लडे और जीते हैं। और उन चुनावों में जितने भी उनके विरोधी प्रत्याशी रहे उनसे उनकी अच्छी मित्रता हो गई जो आज तक कायम है।
हमने देखा है की राजनीति में लोग व्यक्तिगत दुश्मनी कर बैठते हैं। परंतु यहां पर पूरा मामला ही उलट है। जो भी बृजमोहन जी का विरोधी होता है वह आने वाले कल में उनका मुरीद हो जाता है। मैंने ऐसा पहला राजनीतिक व्यक्ति देखा है जिनकी किसी से भी बोलचाल बंद नहीं है। यहां पर एक और बात का जिक्र करना जरूरी हो जाता है कि आमतौर पर नेता अपने विरोधी दल के नेता से सार्वजनिक रूप से मिलने में कतराते हैं। परंतु बृजमोहन जी के साथ ऐसा नहीं है। कहीं कोई विरोधी नेता मिल जाए तो हाथ पकड़ कर उनके साथ चाय पीने भी बैठ जाते हैं। उन्हें इस बात की परवाह नहीं रहती की कौन इसे किस रूप में लेगा या क्या मतलब निकालेगा, षडयंत्र या साठगांठ कहेगा।असल में बृजमोहन अग्रवाल संबंधों में जीते हैं। जो उनकी बड़ी ताकत है। यही वजह है कि हर चुनाव की तरह इस लोकसभा चुनाव में अपनी अपनी राजनीतिक विचारधाराओं से ऊपर उठकर लोगों ने उन्हें सहयोग किया है।
हर समाज को अपना सा लगते हैं बृजमोहन
अपने 35 साल के राजनीतिक कार्यकाल में बृजमोहन अग्रवाल ने कभी भी जाति और धर्म की राजनीति नहीं की। सिर्फ और सिर्फ क्षेत्र के विकास और जनहित के मुद्दों पर अपना फोकस रखा। हर धर्म हर समाज का गरीब आदमी मुख्य धारा से जुड़कर तरक्की की राह पर आगे बढ़े। उसका जीवन स्तर ऊंचा उठे यही प्रयास हमेशा से उनका रहा है। इस बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने सबसे ज्यादा सामुदायिक भवन अपनी विधायक निधि से विभिन्न समाजों के लिए बनवाए हैं। जहां उनका प्रयास रहता है कि सामाजिक क्रियाकलापों के अलावा लोगों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित हो ताकि आर्थिक उन्नति की दिशा में भी बड़ा जा सके। ऐसे ही अपनत्व भाव के कार्यों की वजह से ही छत्तीसगढ़ में कुर्मी, तेली, सतनामी,आदिवासी, ब्राह्मण बनिया,सिंधी, पंजाबी अन्य पिछड़ा वर्ग समाज के लोगों के बीच बृजमोहन अग्रवाल की छवि एक अच्छी पारिवारिक सी है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में किसी भी समाज का अधिवेशन या कार्यक्रम हो और बृजमोहन अग्रवाल उसमें बतौर अतिथि न पहुंचे ऐसा हो नहीं सकता। क्योंकि उन सामाजिक लोगों की पहली पसंद उनके बृजमोहन भैया ही है। मैने तो कार्यक्रमों में प्रत्यक्ष देखा है कि समाजों के कर्ताधर्ता पूरे अधिकार और जिम्मेदारी के साथ बृजमोहन जी को अपने समाजहित का काम सौपते है।उन्हें पता है कि बृजमोहन जी को कोई काम सौंपा मतलब पूर्णतः की गारंटी है।