इस्लामाबाद, 7 सितम्बर (आईएएनएस)। रावलपिंडी स्थित जनरल मुख्यालय (जीएचक्यू) द्वारा अपनी तरह का पहला कबूलनामा
पाकिस्तान के सेना प्रमुख (सीओएएस) जनरल सैयद असीम मुनीर ने किया है और कहा कि भारत के खिलाफ 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी सेना की प्रत्यक्ष भूमिका रही है।
शुक्रवार को रक्षा दिवस पर अपने भाषण के दौरान मुनीर ने भारत के साथ हुए तीन युद्धों के साथ-साथ कारगिल का भी जिक्र किया और पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के सैनिकों द्वारा दी गई शहादत को श्रद्धांजलि दी।
उन्होंने जीएचक्यू में उपस्थित लोगों से कहा, “निश्चित रूप से पाकिस्तानी राष्ट्र एक शक्तिशाली और बहादुर राष्ट्र है, जो स्वतंत्रता के मूल्य को समझता है और जानता है कि इसे कैसे बनाए रखना है। 1948, 1965, 1971, पाकिस्तान और भारत के बीच कारगिल युद्ध या सियाचिन में युद्ध, हजारों लोगों ने अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान दिया और देश की सुरक्षा के लिए शहीद हो गए।”
मुनीर के बयान को कारगिल युद्ध में देश की सेना की प्रत्यक्ष भूमिका पर किसी वर्तमान सेना प्रमुख द्वारा अपनी तरह का पहला कबूलनामा माना जा रहा है, यह एक ऐसा रुख है, जिसे पाकिस्तान पिछले 25 वर्षों से अपनाने से बचता रहा है।
अब तक पाकिस्तान 1999 के युद्ध में अपनी संलिप्तता से इनकार करता रहा है और दावा करता रहा है कि यह कश्मीर के “स्वतंत्रता सेनानियों” द्वारा की गई कार्रवाई थी।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने हमेशा दावा किया कि कारगिल अभियान एक सफल स्थानीय कार्रवाई थी।
एक इंटरव्यू के दौरान मुशर्रफ ने कहा था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को विश्वास में नहीं लिया गया था और भारत के साथ नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर सशस्त्र बलों द्वारा लिए गए कई फैसलों के लिए सेना प्रमुख की मंजूरी की भी आवश्यकता नहीं थी।
हालांकि, मुशर्रफ ने पूरे ऑपरेशन में पाकिस्तानी सेना के 10 कोर एफसीएनए (फोर्स कमांड नॉर्दर्न एरियाज) की भूमिका को स्वीकार किया था।
मुशर्रफ ने कहा, “शुरू में इस इलाके में मुजाहिदीन की गतिविधियां थी। बाद में एफसीएनए ने नियंत्रण रेखा (एलओसी) के 150 मील के खाली इलाके में तैनाती का फैसला किया। इसके लिए किसी से मंजूरी या अनुमति लेने की जरूरत नहीं थी।”
मुशाहिद हुसैन सैयद, जो 1999 में प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के अधीन सूचना सचिव थे, उन्होंने भी विस्तार से बताया कि उनकी सरकार को तत्कालीन डीजीएमओ (सैन्य अभियान महानिदेशक) द्वारा एक आधिकारिक संचार के माध्यम से कारगिल अभियान के बारे में जानकारी दी गई थी।
सैयद ने एक इंटरव्यू में कहा, “जब कारगिल हुआ, तो प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को औपचारिक सूचना और ब्रीफिंग 17 मई 1999 को डीजीएमओ द्वारा दी गई थी। उससे पहले, भारत की ओर से आवाजें आनी शुरू हो गई थी और यह अहसास होने लगा था कि नियंत्रण रेखा पर कुछ हो रहा है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि कारगिल अभियान कुछ लोगों के लिए सफलता की कहानी और कई अन्य लोगों के लिए बड़ी भूल और गलती बनकर रह जाएगी।
उनका कहना है कि मुशर्रफ का एफसीएनए की भागीदारी का दावा, जो पाकिस्तानी सेना के 10 कोर का हिस्सा है और कश्मीर और देश के उत्तरी क्षेत्रों का प्रबंधन करता है, इस तथ्य का समर्थन करने के लिए पर्याप्त स्वीकारोक्ति है, जिसे वर्तमान सेना प्रमुख ने दोहराया है।
यह भी एक तथ्य है कि कारगिल में पाकिस्तानी सेना के कई सैनिकों के शव वापस नहीं लिए गए, जिसके कारण उनके परिवारों ने पाकिस्तानी सरकार और सेना द्वारा शव अपने कब्जे में लेने में अनिच्छा पर सवाल उठाए।
कारगिल में शहीद हुए सेना अधिकारी स्वर्गीय कैप्टन फरहत हसीब के भाई इतरत अब्बास ने पुष्टि करते हुए कहा, “जो अधिकारी हमसे मिलने आए थे, हम उनसे लगातार अपने प्रियजनों के शव वापस लाने की कोशिश करने के लिए कहते रहे। मेरा मानना है कि उन्हें और अधिक प्रयास करने चाहिए थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।”
दिवंगत कैप्टन अम्मार हुसैन की मां रेहाना महबूब ने स्वीकार किया कि कारगिल युद्ध के दौरान उन्हें सेना इकाई और उनके बेटे के दोस्तों से लगातार फोन आते रहे।
उन्होंने कहा कि तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी भी नहीं ली थी।
तत्कालीन सेना प्रमुख के साथ-साथ परिवारों और तत्कालीन सरकारी अधिकारियों के बयान इस बात के लिए पर्याप्त सबूत हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री शरीफ को अंधेरे में रखा गया था, लेकिन सेना की कमान कारगिल ऑपरेशन के बारे में पूरी तरह से जागरूक थी।
–आईएएनएस
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