टाटा एयरलाइंस के रूप में शुरुआती पहचान रखने वाली एयर इंडिया आखिरकार 68 साल बाद फिर से अपने पुराने घर वापस चली गई। लेकिन इसके लिए उसके पुराने मालिक यानी टाटा ग्रुप को 18000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। टाटा ने सबसे ऊंची बोली लगाकर एयर इंडिया को फिर से अपना बना लिया है।
2 लाख रुपये से शुरुआत
अप्रैल 1932 में, टाटा ने इंपीरियल एयरवेज के लिए मेल ले जाने का कॉन्ट्रैक्ट जीता था। इसके बाद जेआरडी टाटा के नेतृत्व में टाटा संस ने दो सिंगल इंजन विमानों के साथ अपना एयरलाइन बिजनेस शुरू किया। इसमें शुरुआती निवेश दो लाख रुपये था। आपको बता दें कि दो लाख रुपये की रकम उस समय के लिए बहुत बड़ी थी लेकिन भारत के पहले कमर्शियल पायलट जेआरडी टाटा को एयरलाइन से इस कदर लगाव था उन्होंने इतनी बड़ी रकम लगाने में थोड़ा भी संकोच नहीं किया। हालांकि, एक साल के भीतर टाटा के कारोबारी हूनर का सबको पता चल गया जब पहले साल टाटा एयरलाइन ने 60,000 रुपये का मुनाफा कमाया।शुरुआत में कंपनी ने साप्ताहिक एयर मेल सर्विस का संचालन किया। कराची और मद्रास के बीच और अहमदाबाद और बॉम्बे के जरिए चलती थी। एयरलाइन से पहले साल में 155 मुसाफिरों ने सफर किया और 9.72 टन मेल ढोया।
टाटा समूह को इस सौदे में क्या-क्या मिलेगा
एयर इंडिया को खरीदने वाले टाटा ग्रुप को घरेलू हवाई अड्डों पर 4,400 घरेलू और 1,800 अंतरराष्ट्रीय लैंडिंग और पार्किंग स्थान का नियंत्रण दिया जाएगा। इसके अलावा टाटा को एयर इंडिया की सस्ती विमानन सेवा एयर इंडिया एक्सप्रेस की भी 100 फीसदी हिस्सेदारी मिलेगी।
रतन टाटा ने कहा, वेलकम बैक
टाटा संस द्वारा एयर इंडिया के लिए बोली जीतने के बाद, समूह के मानद चेयरमैन रतन टाटा ने कंपनी के पूर्व अध्यक्ष जेआरडी टाटा की एयर इंडिया से पद छोड़ने की एक पुरानी तस्वीर ट्वीट की। “एक भावनात्मक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एयर इंडिया ने एक समय में दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइनों में से एक होने की प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। टाटा के पास पहले के वर्षों में मिली छवि और प्रतिष्ठा को फिर से हासिल करने का अवसर होगा। जेआरडी टाटा अगर आज हमारे बीच होते तो बहुत खुश होते। वेलकम बैक एयर इंडिया!