केशव प्रसाद मौर्य की डिग्री पर क्यों छिड़ा है विवाद, कोर्ट ने दिए जांच के आदेश

यूपी के उपमुख्‍यमंत्री (डिप्टी सीएम) और बीजेपी नेता केशव प्रसाद मौर्य (Keshav Prasad Maurya) इस समय फर्जी डिग्री विवाद में फंस गए हैं। पिछले दिनों प्रयागराज की एसीजेएम कोर्ट ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं। केस की अगली सुनवाई 25 अगस्‍त को होनी है। यह आदेश आरटीआई कार्यकर्ता दिवाकर त्रिपाठी की कोर्ट में दाखिल अर्जी पर दिया गया है। केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप हैं कि उन्‍होंने निर्वाचन आयोग के सामने अपनी शै‍क्षणिक योग्‍यता की जो भी जानकारी दी है वह गलत है।

क्या है विवाद

केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप हैं कि उन्‍होंने साल 2012 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान सिराथ विधानसभा सीट से और साल 2014 में फूलपुर लोकसभा सीट से नामांकन के दौरान हलफनामे में अपनी डिग्री बीए बताई है। इसमें बताया गया है कि उन्‍होंने हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन से साल 1997 में बीए किया है। लेकिन केशव प्रसाद मौर्य पर आरोप हैं कि उन्‍होंने अलग-अलग फर्जी डिग्रियों से अलग-अलग चुनाव लड़े हैं। साल 2017 में उन पर राजू तिवारी नाम के एक व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि मौर्य ने 2007 में प्रयागराज के पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ते समय हलफनामे में जानकारी देते हुए बताया था कि उन्‍होंने हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन से 1986 से प्रथमा, 1988 में मध्‍यमा और 1998 में उत्‍तमा की थी। प्रथमा की डिग्री को कुछ राज्‍यों में हाईस्‍कूल, मध्‍यमा को इंटर और उत्‍तमा को ग्रेजुएट के समकक्ष मान्‍यता दी जाती है।

पास करने के अलग-अलग साल पर भी विवाद

शिकायतकर्ता राजू तिवारी का कहना था कि हिंदी साहित्‍य सम्‍मेलन बीए की डिग्री नहीं देता इसलिए हलफनामे में दी गई जानारी गलत है। और अगर वह उत्‍तमा को ही बीए की डिग्री बता रहे हैं तो दोनों के पास करने वाले साल अलग-अलग क्‍यों हैं। यानी 2007 के हलफनामे में उत्‍तीर्ण करने का वर्ष 1998 लिखा है, जबकि 2012 और 2014 के चुनावी हलफनामे में पास करने का साल 1997 लिखा गया है।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य (फाइल फोटो)

कानून के जानकार और चुनावी दस्तावेजों पर नजर रखने वाले एक विशेषज्ञ का कहना है कि पूरी सच्चाई दस्तावेज के विश्लेषण के बाद ही सामने आ सकती है। उनका कहना है कि सरकारी दस्तावेज या हलफनामें में बने बनाए फॉर्मेट होते हैं। कई बार इसकी वजह भी कुछ बातों को लेकर असमंजस होता है। उनका कहना है कि शिकायतकर्ता ने दो सवाल उठाए हैं। पहला डिग्री का और दूसरा पास करने के वर्ष का है। उनका कहना है कि ज्यादातर कॉलम में साक्षर, मैट्रिक, इंटर, ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट का कॉलम होता है। शिकायतकर्ता ने मौर्या की के बीए की डिग्री पर सवाल उठाया है। कई राज्यों में उत्तमा को बीए यानी ग्रेजुएट के समकक्ष मान्यता है। ऐसे में समकक्ष डिग्री है तो उसको लेकर डिग्री के फर्जी होने का आरोप नहीं सकते। मौर्या के मामले में भी ऐसा ही कुछ दिख रहा है शिकायतकर्ता को उत्तमा की डिग्री पर एतराज नहीं है बल्कि उसे बीए के रूप में हलफनामे में लिखने जाने को लेकर ऐतराज है और इसी के आधार पर डिग्री फर्जी होने का दावा किया जा रहा है।

विशेषज्ञ का कहना है कि देश के कई मैनेजमेंट स्कूल (कॉलेज) पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा की डिग्री देते हैं जिसे पोस्ट ग्रेजुएट के समकक्ष माना जाता है। ऐसे लोग अपने कॉलम में पोस्ट ग्रेजुएट लिख सकते हैं। लेकिन यूजीसी के मानकों के अनुसार इन्हें नेट की परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं क्योंकि वह इसे पोस्ट ग्रेजुएट के रूप में मान्यता नहीं देता है। ऐसे में कोई व्यक्ति इसको लेकर भी सवाल उठा सकता हैं कि संबंधित व्यक्ति ने फर्जी हलफनामा दिया है। वहीं मौर्या के मामले में दूसरा मामला पास करने के वर्ष का है। विशेषज्ञ का कहना है कि स्पष्टीकरण मौर्या के संबंधित प्रमाणपत्र को देखने के बाद ही हो सकता है। इसमें परीक्षा का वर्ष, पास करने का वर्ष और अंतिम डिग्री मिलने का वर्ष देखना होगा और इनका आकलन करना होगा। उनका कहना है कि कई बार परीक्षा जिस वर्ष होती है परिणाम उसके अलगे वर्ष आता है। जबकि अंतिम डिग्री आने में दो साल तक लग जाते हैं। इसको लेकर भी भ्रम की स्थिति बन जाती है। उनका कहना कि मौर्या की डिग्री को लेकर सही क्‍या है और गलत क्‍या यह तो कोर्ट के आदेश के बाद ही तय होगा।