सत्यदेव प्रकाश : गुरुकुल में लकड़ी के तीर से सीखकर एथेंस में दुनिया के टॉप ऑर्चर को टक्कर देने वाले तीरंदाज

नई दिल्ली, 18 सितंबर (आईएएनएस)। भारत के लिए तीरंदाजी हमेशा उम्मीद की किरण रही है, क्योंकि भारतीय तीरंदाज अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करते हैं। ऐसे ही एक तीरंदाज थे सत्यदेव प्रकाश जिनका जन्म 19 सितंबर के दिन 1979 में हुआ था। सत्यदेव प्रकाश को तीरंदाजी के खेल में दिए गए महान योगदान के चलते साल 2018 में ध्यानचंद अवार्ड दिया गया था।

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में निजामाबाद कस्बे में जन्में सत्यदेव प्रसाद को उस जमाने के चर्चित आर्चर लिंबा राम की सफलता ने काफी प्रेरित किया था। कम ही उम्र में सत्यदेव ने तीरंदाजी शुरू कर दी। तीरंदाजी एक ऐसा खेल जो प्राचीन समय से खेला जा रहा है। महाभारत में अर्जुन, कर्ण जैसे महान योद्धाओं की वीरगाथा उनके धनुष से निकले तीरों ने ही लिखी थी। भारत की प्राचीन संस्कृति के सत्यदेव की रुचि भी बचपन से ही थी।

इसलिए, उनकी शुरुआती शिक्षा मेरठ में गुरुकुल पद्धति से हुई थी। गुरुकुल प्रभात आश्रम में ही उन्होंने साल 1993 में लकड़ी के तीर से प्रशिक्षण करना शुरू कर दिया था। उनकी मेहनत और लगन ने अगले ही साल उन्होंने नेशनल जूनियर आर्चर प्रतियोगिता में चैंपियन बना दिया था। 1997 में जमशेदपुर में नेशनल तीरंदाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने ने उनको चर्चित बना दिया था। इसके अगले साल उन्होंने रोम में विश्व चैंपियनशिप में भी हिस्सा लिया था। इसके बाद 2001 में बीजिंग में भी विश्व चैंपियनशिप में भाग लिया था।

सत्यदेव ने इन इवेंट में व्यक्तिगत और टीम स्पर्धा में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। उन्होंने पहली बार ओलंपिक में एथेंस 2004 में हिस्सा लिया था। जहां व्यक्तिगत इवेंट में उन्हें 10वां और टीम इवेंट में 11वां स्थान मिला था। खास बात यह है कि सत्यदेव का यह ओलंपिक प्रदर्शन तब किसी भी भारतीय तीरंदाज के लिए सर्वश्रेष्ठ था। उल्लेखनीय है कि ओलंपिक में भारत अभी तक एक भी मेडल तीरंदाजी में नहीं जीत पाया है।

एथेंस ओलंपिक 2004 में सत्यदेव दक्षिण कोरिया के शीर्ष वरीयता प्राप्त इम डोंग ह्यून को कड़ी चुनौती देने के बहुत करीब पहुंच चुके थे। यह क्वार्टर फाइनल मुकाबला था जहां प्रसाद दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी से मामूली अंतर से हार गए थे। तब ओलंपिक में किसी भी इवेंट में एक मेडल जीतना भी भारत के लिए बेहद दुर्लभ हुआ करता था। प्रसाद का यह प्रदर्शन अपने आप में बड़ी उपलब्धि के समान था। हालांकि तब सोशल मीडिया का जमाना नहीं होने से इस तरह की उपलब्धि को बड़ी लाइमलाइट नहीं मिली थी।

तब खिलाड़ियों के पास आज जितनी सुविधाएं भी नहीं थी। मैच हारने के बाद जब प्रसाद से उनकी नजदीकी हार का कारण पूछा गया तो वह आसानी से अपने पास सुविधाओं की कमी, बेकार उपकरण और ट्रेनिंग के ऊपर दोष डाल सकते थे। लेकिन उन्होंने केवल इतना कहा था, “हार के पीछे का कारण कोई खास नहीं है। शायद हवा का झोंका आज मेरे पक्ष में नहीं था।”

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल जीतने वाले प्रसाद को 25 सितंबर को तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा मेजर ध्यानचंद राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था। निजामाबाद में उस दिन बड़ी खुशी का माहौल था। तब तक प्रसाद तीरंदाजी करियर को विदाई दे चुके थे और कोच व मैनेजर की भूमिका में थे। उन्होंने साल 2017, 2018, 2019, 2024 में भारतीय टीम के मैनेजर की भूमिका निभाई है। साल 2022 में वह टीम के कोच भी रह चुके हैं।

–आईएएनएस

एएस/