नई दिल्ली, 27 अगस्त (आईएएनएस)। सफर छोटा भले ही हो, लेकिन इतना रोचक हो कि जमाना सदियों तक उसे याद करे। भारतीय तलवारबाजी की अब तक की सबसे बड़ी आइकन भवानी देवी का सफर भी कुछ ऐसा ही है। या यूं कह लीजिए भवानी ने भारत में तलवारबाजी का नया अध्याय लिखा। आज (27 अगस्त) उनके जन्मदिन के मौके पर चलिए इस चैंपियन से जुड़े कुछ रोचक किस्से जानते हैं।
देवी, कॉमनवेल्थ फेंसिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली तलवारबाज हैं। उनके नाम कई उपलब्धियां दर्ज हैं, हालांकि टोक्यो ओलंपिक में वो मेडल से चूक गईं और पेरिस के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाईं।
भले ही वह टोक्यो ओलंपिक में कोई मेडल नहीं जीत सकीं, लेकिन उन्होंने अपने साथ भारत का नाम ओलंपिक के इतिहास में दर्ज करा दिया। दरअसल, फेंसिंग साल 1896 से ओलंपिक का हिस्सा रहा है, लेकिन 125 साल बाद कहीं जाकर भारत ने इस खेल में डेब्यू किया, जिसका प्रतिनिधित्व सी. ए. भवानी देवी ने किया। इस दौरान उन्होंने अपना हुनर साबित किया और विदेशी सरजमीं पर अपनी पहचान बनाई।
फेंसिंग की दुनिया में देवी का नाम नया नहीं है। यह अलग बात है कि टोक्यो के बाद उन्हें पहचान मिली। फेंसिंग में यह तलवारबाज कई मेडल अपने नाम कर चुकी हैं। शुरुआत उन्होंने साल 2009 के कॉमनवेल्थ गेम से की, जिसमें उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। कैडेट एशियन चैम्पियनशिप, अंडर-23 एशियन चैम्पियनशिप सहित कई टूर्नामेंट्स में मेडल्स अपने नाम किए। अंडर-23 एशियन चैम्पियनशिप जीतने वाली वह पहली भारतीय हैं। ऐसे कई और भी रिकॉर्ड्स है, जिस पर भारत की इस बेटी का कब्जा है।
देवी ने एक मीडिया इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने इस खेल को मजबूरी में अपनाया था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें यह पसंद आ गया और वक्त के साथ उनका पूरा ध्यान इस खेल पर आ गया।
देवी ने बताया था, जब मैं 2004 में नए स्कूल में गई तो वहां पर सीनियर्स ने बताया कि हर गेम में एक क्लास से 6 बच्चे ही अपना नाम लिखवा सकते हैं। जब मैं अपना नाम देने गई तो सभी खेलों में 6-6 बच्चे हो चुके थे। सीनियर्स ने कहा, फेंसिंग में बच्चे नहीं हैं। इसमें नाम लिखवा लो। यह नया गेम है। मैंने जब ट्रेनिंग शुरू की तो मुझे यह गेम काफी अच्छा लगा, उसके बाद मैंने अपना पूरा फोकस इस गेम पर लगा दिया।
–आईएएनएस
एएमजे/केआर