उस्ताद अलाउद्दीन खां, जिन्होंने पत्नी के नाम पर रचा ‘मदनमंजरी राग’, रखी थी मैहर घराने की नींव

नई दिल्ली, 6 सितंबर (आईएएनएस)। भारतीय शास्त्रीय संगीत का जिक्र हो और किसी घराने की बात न हो ऐसा भला हो सकता है क्या? ऐसा ही एक घराना है “मैहर”, जिसकी नींव रखी थी भारतीय संगीत के भीष्म पितामह कहे जाने वाले उस्ताद अलाउद्दीन खां ने।

बाबा अलाउद्दीन खां ने अपने पूरे जीवन में कई संगीतकारों को सुना और उनसे सीखा भी। वे जहां भी गए और जो भी चीज उन्हें प्रेरित करती थी तो वे उसे अपना लेते थे। संगीत पर उनकी पकड़ का अंदाजा आप इस बात से ही लगा सकते हैं कि मैहर घराने ने ही बारूद की जगह बंदूकों से संगीत निकालने की अनोखी कला को विकसित किया।

‘पद्म भूषण’, ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित उस्ताद अलाउद्दीन खां का जन्म साल 1881 में हुआ था। संगीत परिवार से ताल्लुक होने के कारण उन्होंने अपने बड़े भाई फकीर आफताबुद्दीन खां से संगीत की पहली शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने गोपाल चंद्र बनर्जी, लोलो और मुन्ने खां जैसे संगीत के महारथियों से संगीत की दीक्षा ली। संगीत में बढ़ती रुचि ने उन्हें रामपुर तक पहुंचा दिया। यहां उन्होंने मशहूर वीणावादक रामपुर के वजीर खां साहब से भी संगीत के गुर सीखे।

रामपुर के संगीतकारों का उन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने अपनी खुद की एक शैली विकसित कर ली, जिसे बीनकार घराने की ध्रुपद शैली के अलाप ने पूरा किया। आगे चलकर उस्ताद अलाउद्दीन खां ने भारतीय संगीत के सबसे बड़े घरानों में से एक मैहर घराने की नींव रखी। इस घराने का नाम मैहर राज्य की वजह से पड़ा, जहां उन्होंने अपना अधिकतर जीवन बिताया था।

उन्होंने कुछ लोगों को अलग-अलग तरह के वाद्ययंत्र बजाना सिखाना शुरू किया। इन वाद्ययंत्रों में कई ऐसे थे, जो उन्होंने ही बनाए थे। सितार और सरोद के मेल से बैंजो सितार, बंदूक की नलियों से नलतरंग, उनकी प्रमुख रचनाओं में शामिल हैं।

मशहूर फिल्मकार संजय काक ने उस्ताद अलाउद्दीन खां पर एक डाक्यूमेंट्री भी बनाई। इस डॉक्यूमेंट्री को जिसने भी देखा वो उस्ताद अलाउद्दीन खां का मुरीद हो गया। उस्ताद अलाउद्दीन खां सिर्फ गायक और वादक ही नहीं थे, बल्कि ढोल बजाने में भी कमाल थे। वे पखावज और तबला बजाने में भी माहिर थे।

संगीत के अलावा उनका दूसरा प्यार बेगम मदीना थीं। प्रेम इतना कि उस्ताद अलाउद्दीन खां ने अपनी पत्नी मदीना बेगम के नाम पर एक नया राग ‘मदनमंजरी राग’ रच डाला। बताया जाता है कि शुरुआत में तो उन्हें इस राग का नाम समझ नहीं आया था, बाद में उन्होंने काफी सोचने के बाद इसे मदनमंजरी नाम दिया।

उस्ताद अलाउद्दीन खां ने संगीत क्षेत्र में योगदान दिया और उन्होंने मैहर कॉलेज ऑफ म्यूजिक की स्थापना की। उन्हें 1952 में संगीत नाटक अकादमी ने सम्मानित किया। इतना ही नहीं भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी नवाजा। अलाउद्दीन खां का 6 सितंबर 1972 को निधन हो गया और इस तरह से भारतीय शास्त्रीय संगीत का फनकार जुदा हो गया।

–आईएएनएस

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