नई दिल्ली, 21 अगस्त (आईएएनएस)। साहित्य जगत में ‘लेडी चंगेज खान’ के नाम से मशहूर इस्मत चुगताई किसी परिचय की मोहताज़ नहीं हैं।
उन्होंने अपनी किताब ‘आधी औरत आधा ख्वाब’ में लिखा था, “मां की ममता का सारी दुनिया ढोल पीटती है। बाप की बापता का रोना कोई नहीं रोता। औरत की इज्जत लुट सकती है, मर्द की नहीं लुटती। शायद मर्द की इज्जत भी नहीं होती, जो लूटी-खसोटी जा सके।”
महिलाओं की समस्याओं को बेबाकी से शब्दों के जरिए पेश करना इस्मत चुगताई का हुनर था। उन्हें ‘इस्मत आपा’ भी कहा जाता है। अपनी रचनाओं से उन्होंने महिलाओं के एक बड़े समूह को रास्ता जो दिखाया है, लिहाजा, यह नाम उन पर फबता भी है। आज ‘इस्मत आपा’ का जन्मदिन है। तो, पढ़िए उनके बारे में…
उत्तर प्रदेश के बदायूं में 21 अगस्त 1915 को पैदा हुईं इस्मत चुगताई दस भाई-बहनों में नौ नंबर पर थीं। खेलने की उम्र में शब्दों से प्यार हो गया और छोटी उम्र में इस्मत ने अपनी लिखने की दुनिया को सजाना-संवारना शुरू कर दिया। इस्मत के पिता सरकारी मुलाज़िम थे। घर में कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन, घरवालों को इस्मत के लड़कों के साथ खेलने से नाराजगी थी।
कई मौकों पर इस्मत कहती थीं, “अम्मी को मेरा लड़कों के साथ खेलना पसंद नहीं था। वो आदमी हैं, क्या आदमी को आदमी खाता है?” कहने का मतलब है कि इस्मत को कम्र उम्र में इंसान और इंसानियत की समझ आ चुकी थी। यही समझ उनकी लेखनी के हिस्से में भी आई, जिसने इस्मत आपा को अमर बना दिया।
इस्मत के भाई मिर्जा अज़ीम बेग चुगताई भी जाने-माने लेखक थे। उनसे ही इस्मत ने शुरुआती तालीम ली। साल था 1936, जब लखनऊ में आयोजित प्रगतिशील लेखक संघ सम्मेलन में इस्मत चुगताई ने शिरकत की। उनके बारे में कहा जाता था कि वह बीए और बीएड करने वाली पहली भारतीय मुस्लिम महिला थीं।
इस्मत ठेठ मुहावरों और गंगा-जमुनी भाषाओं को इस्तेमाल करती थी। जिसे हिंदी या उर्दू, किसी एक भाषा में कैद नहीं किया जा सकता था। उनकी भाषा और लेखन शैली में प्रवाह अद्भुत था। इस्मत ने उपन्यास से लेकर कहानियां और कविताएं लिखी। उन्हें ‘मॉडर्न उर्दू शॉर्ट स्टोरी’ के एक स्तंभ के रूप में भी माना जाता है।
इस्मत बेबाक और जिंदादिल फितरत की इंसान थीं। उन्होंने कई मुद्दों पर लिखा। सबसे ज्यादा महिलाओं के अधिकारों के लिए कलम चलाई। इस्मत की साल 1942 में कहानी ‘लिहाफ’ आई। इसने साहित्य जगत में तूफान ला दिया। ‘लिहाफ’ समलैंगिक रिश्ते पर लिखी गई, जिसे ‘अश्लील साहित्य’ करार दे दिया गया था।
उन पर लाहौर कोर्ट में मुकदमा चला। इस्मत ने माफी नहीं मांगी। उन्होंने मुकदमा लड़ा, ‘लिहाफ’ का बचाव किया, जीत हासिल की। कहीं ना कहीं उनके दिल में ‘लिहाफ’ को लेकर हुए हंगामे की टीस रह गई, जो रह-रहकर उभरती थी।
इस्मत ने कई मौकों पर कहा था, “मुझे अश्लील लेखिका का तमगा दे दिया गया था। ‘लिहाफ’ से पहले और उसके बाद मैंने काफी कुछ लिखा, किसी ने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। लोगों की नजर में ‘लिहाफ’ था। मुझे सेक्स जैसे विषय पर लिखने वाली अश्लील लेखिका कहा जाने लगा। कई सालों बाद कई युवाओं ने ‘लिहाफ’ को पसंद किया। उनका कहना था कि मैंने अश्लील साहित्य नहीं, सच्चाई लिखी। मेरे जीते जी मुझे समझा गया, मेरे लिए सुकून की बात है।”
1986 में इस्मत की किताब ‘आधी औरत आधा ख्वाब’ आई। यह कई कहानियों का संग्रह है। इसके जरिए इस्मत ने औरत की ज़िंदगी के अनछुए पहलुओं को छुआ। इसकी नौ कहानियों में औरतों के जीवन के संघर्षों और विडंबनाओं को सामने रखा गया।
उनकी रचनाओं में ‘चोटें’, ‘छुईमुई’, ‘एक बात’ से लेकर ‘टेढ़ी लकीर’, ‘जिद्दी’, ‘एक क़तरा खून’, ‘दिल की दुनिया’, ‘दोजख’, ‘मसूमा’, ‘तनहाई का ज़हर’, ‘बदन की खुशबू’, ‘अमरबेल’, ‘कागजी है पैरहन’ काफी प्रसिद्ध हैं। कई अन्य नाम भी हैं, लेकिन, इस्मत की हर रचना अपने आप में बेहद खास है।
इस्मत अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने वाली महिला थीं। उन्होंने अपनी जिंदगी में बेहद उतार-चढ़ाव देखें। कहा जाता है कि उन्हें अश्लील पत्र लिखे गए, जान से मारने की धमकियां मिली, उन्हें अदालतों के चक्कर तक काटने पड़े।
इस्मत ने किसी बात का रोना नहीं रोया। अपनी धुन में व्यस्त रहीं। उन्होंने हिंदी फिल्मों में काम किया। 13 फिल्मों से जुड़ीं। इस्मत की आखिरी फिल्म ‘गर्म हवा’ थी। इस फिल्म को नेशनल अवॉर्ड और फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला।
उन्हें 1976 में भारत सरकार ने पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया। इसके अलावा भी साहित्य अकादमी समेत कई अवॉर्ड मिले थे।
इस्मत आपा ने 24 अक्टूबर 1991 को दुनिया को अलविदा कहा। जिंदगी की तरह उनकी मौत भी खबरों में रही।
कहा जाता है कि इस्मत ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उन्हें दफनाया नहीं, जलाया जाए। उनका मुंबई में दाह संस्कार कर दिया गया। कई लोगों ने इस दावे का खंडन भी किया।
यह सच्चाई भी ‘आपा’ के साथ हमेशा के लिए रुखसत हो गई।
–आईएएनएस
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