नई दिल्ली, 12 सितंबर (आईएएनएस)। हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए गुरुवार को नामांकन दाखिल करने का अंतिम दिन था। अंतिम दिन धड़ाधड़ सभी पार्टियों के बचे हुए उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया। इस बार हरियाणा विधानसभा चुनाव की तस्वीर कुछ अलग ही देखने को मिलने वाली है।
इसके पीछे की कई वजह हैं। एक तो भाजपा यहां 10 साल से सत्ता में है, ऐसे में सरकार के खिलाफ जनता में एक लहर, दूसरी कांग्रेस का अकेले विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला, तीसरा कांग्रेस और भाजपा के खिलाफ आम आदमी पार्टी (आप) का मैदान में उतरना, चौथा कांग्रेस में अंदरुनी कलह के साथ टिकट बंटवारे को लेकर उसके कार्यकर्ता और नेताओं के बीच फैली नाराजगी एवं पांचवां और सबसे अहम हरियाणा की क्षेत्रीय पार्टियां जैसे इनेलो और जजपा का इस चुनाव के लिए दमखम लगाना। इस सब के बीच कांग्रेस में बगावत हरियाणा चुनाव के पूरे सीन को बदल सकता है।
दरअसल, इस बार कांग्रेस को आशा है कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने में वह कामयाब रहेगी। लेकिन, जिस तरह से टिकट बंटवारे के बाद कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता एक-एक कर पार्टी छोड़ते गए और इनेलो एवं आप जैसी पार्टियों का दामन थामते गए, उसने बहुत कुछ बता दिया। कांग्रेस के लिए यह इस चुनाव में अच्छे संकेत नहीं माने जा रहे हैं।
कांग्रेस ने हरियाणा चुनाव में कई पूर्व विधायकों व वरिष्ठ नेताओं का टिकट काट दिया। कांग्रेस से टिकट काटे जाने के बाद से सभी ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कांग्रेस में यहां खेमेबाजी भी खूब देखने को मिल रही है। एक तरफ कुमारी शैलजा के समर्थक, दूसरी तरफ भूपेंद्र हुड़्डा के समर्थक और तीसरी तरफ रणदीप सिंह सुरजेवाला को चाहने वाले कांग्रेस कार्यकर्ता और नेता।
हालांकि, कार्यकर्ता और नेता जो इस समय पार्टी के साथ जुड़े हैं, वह जरूर यह कहते रहे हैं कि पार्टी में किसी तरह का कोई मतभेद नहीं हैं और सभी एक साथ पूरी ताकत से खड़े हैं और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनेगी।
लेकिन, राजनीतिक जानकार और पार्टी के सूत्र स्पष्ट तौर पर इस बात की पुष्टि कर रहे हैं कि कांग्रेस एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है। उन्होंने तो हरियाणा में पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच सबसे ज्यादा चहेते रहे रणदीप सुरजेवाला जैसे लोगों को भी खत्म कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर पार्टी में विद्रोह हुआ है, जो नियंत्रण से बाहर है और लगभग हर सीट पर कम से कम एक प्रमुख कांग्रेसी नेता विद्रोही होकर निर्दलीय या किसी अन्य पार्टी से चुनाव मैदान में है।
वहीं, पार्टी के कुछ कार्यकर्ता तो दबे स्वर में यह भी कहने लगे हैं कि पार्टी की तरफ से प्रदेश में कुमारी शैलजा के बढ़ते प्रभाव को भी पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है, जो पार्टी के दलित विरोधी स्वभाव को दर्शाता है। जबकि, पार्टी लगातार दलितों की हितैषी होने का दावा करती रही है। पार्टी के पक्ष में मतदान करने वाले मतदाता भी इस बारे में दबी जुबान से ही सही, लेकिन इस बात का जिक्र जरूर करने लगे हैं।
कांग्रेस को हरियाणा की कम से कम 30 सीटों पर इनेलो सीधी टक्कर देकर खेल में बड़ी वापसी करती नजर आ रही है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह भी कांग्रेस पार्टी के अंदर का अतर्कलह ही है। क्योंकि, कांग्रेस के कई नेता और कार्यकर्ता इनेलो के साथ हो गए हैं और इनेलो ने इनमें से कई को टिकट भी दे दिया है।
कुछ नाम जो यहां यह बताने के लिए काफी हैं कि आखिर हरियाणा में कांग्रेस की स्थिति क्यों पहले के जैसे नहीं रही है। ललित नागर, हरियाणा के तिगांव विधानसभा से पूर्व में विधायक रहे हैं। यह इस विधानसभा से तब जीते थे, जब साल 2014 में नरेंद्र मोदी की लहर में भाजपा ने हरियाणा में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। भाजपा के राजेश नागर महज कुछ वोट से ललित नागर से हारे थे। ललित नागर कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता रहे हैं। उन्हें पार्टी ने साल 2019 में विधानसभा का दोबारा टिकट दिया।
लेकिन, इस बार भाजपा से उम्मीदवार बनाए गए राजेश नागर, ललित नागर को हराने में कामयाब रहे और जीत गए। इस विधानसभा सीट से कांग्रेस ने ललित नागर को तीसरी बार टिकट नहीं दिया है। उनकी जगह रोहित नागर को टिकट दिया गया है। टिकट नहीं मिलने पर ललित नागर भावुक हो गए। कांग्रेस के खिलाफ हल्ला बोलते हुए उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया।
कांग्रेस में बगावत के सुर पूर्व विधायक शारदा राठौर ने भी छेड़ दिया है। वह कांग्रेस की टिकट पर पूर्व में बल्लभगढ़ विधानसभा से विधायक रही हैं। लेकिन, इस बार कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया। शारदा राठौर ने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। कांग्रेस ने यहां से पराग शर्मा को टिकट दिया है।
वहीं, टिकट नहीं मिलने से नलवा में कांग्रेस नेता संपत सिंह ने भी अपने तेवर दिखा दिए। उन्होंने कार्यकर्ताओं की बैठक बुलाई।
पूर्व मेयर और कांग्रेस नेता उपेन्द्र कौर अहलूवालिया ने भी कांग्रेस के खिलाफ बगावत के सुर दिखाए। कांग्रेस ने उपेन्द्र कौर अहलूवालिया की जगह चंद्रमोहन को टिकट दिया। भिवानी के बवानी खेड़ा से कांग्रेस ने प्रदीप नारवाल को टिकट दिया है। यहां से पार्टी से टिकट की उम्मीद लगाए मास्टर सतबीर रतेरा को झटका लगा है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो, दोनों ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया है।
अंबाला कैंट से टिकट काटे जाने के बाद पूर्व मंत्री चौधरी निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर नामांकन दाखिल किया। कांग्रेस ने चित्रा को टिकट नहीं दिया। कांग्रेस ने यहां से परिमल परी को टिकट दिया है। वहीं, पानीपत शहरी सीट से टिकट नहीं मिलने के बाद रोहिता रेवाड़ी ने निर्दलीय के तौर पर नामांकन दाखिल किया है। उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। दूसरी तरफ पानीपत ग्रामीण से टिकट नहीं मिलने पर विजय जैन ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और निर्दलीय के तौर पर मैदान में उतर गए।
–आईएएनएस
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