65 साल पहले छोटे से डिब्बे में समाया संसार, ‘टेलीविजन इंडिया’ से डिजिटल चैनल तक – दूरदर्शन ने बदल दिया समाज

14 सितंबर, नई दिल्ली (आईएएनएस)। महाभारत में संजय ने राजमहल में बैठे-बैठे कुरुक्षेत्र के मैदान में चल रही कौरवों और पांडवों की लड़ाई देखी थी और उसका सारा हाल धृतराष्ट्र को सुनाया था। इस पर आसानी से विश्वास करने के बावजूद 65 साल पहले तक देश में शायद ही किसी ने सोचा था कि एक दिन वाकई मीलों दूर बैठे किसी व्यक्ति की आवाज के साथ उसकी चलती-फिरती तस्वीर भी उसी समय देखना संभव हो सकेगा। लेकिन विज्ञान के चमत्कार ने इसे संभव कर दिखाया।

एक छोटे से स्टूडियो से प्रयोग से तौर पर सिर्फ आधे घंटे के प्रसारण से शुरू दूरदर्शन के सफर को 65 साल पूरे हो चुके हैं। इस दौरान एशियन गेम्स की कवरेज से लेकर, हम लोग सीरियल तक, रामायण और महाभारत से लेकर शुक्रवार शाम की फिल्मों तक, समाचार से लेकर चित्रहार तक, ब्लैक एंड व्हाइट से लेकर रंगीन टेलीविजन सेट तक, एंटीना से केबल टीवी और अब डिजिटल सिग्नल तक, दूरदर्शन ने समाज पर और समाज ने दूरदर्शन पर अमिट छाप छोड़ी है।

ऑल इंडिया रेडियो के एक स्टूडियो से 15 सितंबर 1959 को ‘टेलीविजन इंडिया’ के नाम से प्रयोग के तौर पर देश में पहली बार टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ। उस समय सप्ताह में तीन दिन आधे-आधे घंटे के विकास और शिक्षा से जुड़े कार्यक्रम प्रसारित होते थे। साल 1965 में एक सेवा के तौर पर दिल्ली और आसपास के इलाकों में आम लोगों के लिए इसका प्रसारण शुरू हुआ। हालांकि उस समय भी टीवी सेट खरीदना आम आदमी के वश की बात नहीं थी। वह दौर था ब्लैक एंड व्हाइट टेलीविजन का।

साल 1972 में यह दिल्ली से आगे बढ़ा और इसका प्रसारण अमृतसर और मुंबई में शुरू हुआ। इसके बाद 1975 में यह सात अन्य राज्यों तक पहुंचा। इस दौरान यह राष्ट्रीय प्रसारक ऑल इंडिया रेडियो का हिस्सा बना रहा। साल 1975 में इसका नाम ‘टेलीविजन इंडिया’ से बदलकर दूरदर्शन कर दिया गया। अगले साल 1 अप्रैल 1976 को यह आकाशवाणी से अलग होकर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत एक नया विभाग बन गया, हालांकि समाचारों के लिए अब भी आकाशवाणी ही सेवाएं देता था।

देश में 1982 में पहली बार एशियाई खेल होने थे। उसी समय दूरदर्शन का रंगीन प्रसारण शुरू हुआ। एशियाई खेलों ने दूरदर्शन को नई पहचान और देश के अन्य हिस्सों में विस्तार करने का सुनहरा मौका दिया। इस समय तकनीकी विस्तार भी हुआ।

सन् 1980 के दशक में एशियाई खेलों के अलावा धारावाहिक ‘हम लोग’ ने भी दूरदर्शन की पहुंच का विस्तार किया। लेकिन दूरदर्शन के कार्यक्रमों को घर-घर पहुंचाने का श्रेय जाता है ‘महाभारत’ और ‘रामायण’ को। इस दौरान टेलीविजन सेट की बिक्री खूब बढ़ी। कई लोगों ने नया टीवी खरीदा, कई ने ब्लैक एंड व्हाइट को रंगीन टीवी सेट में बदला। जिनके घर टीवी नहीं था, वे भी दूसरों के घर जाकर दोनों धारावाहिक देखते थे।

साल 1986, जब रामानंद सागर कृत रामायण दूरदर्शन पर आया तो रविवार की सुबह इस प्रोग्राम के समय देश भर में सड़कों पर सन्नाटा होता था। यहां से टीवी और दूरदर्शन का प्रसार धीरे-धीरे बढ़ता चला गया।

सन् 1990 का दशक आते-आते आम लोगों के मनोरंजन के साधन के रूप में रेडियो का एकाधिपत्य समाप्त होने लगा और दूरदर्शन उसकी जगह लेने लगा। तकनीक बदलने के साथ टेलीविजन पर एक मात्र प्रसारक रहे दूरदर्शन को निजी चैनलों से चुनौती मिलने लगी। लेकिन दूरदर्शन ने भी आधुनिकीकरण से साथ चुनौती का डटकर सामना किया।

घर-घर तक पहुंच चुका दूरदर्शन अब 65 बरस का हो गया है। देश-विदेश में इसकी पहुंच आज भी सबसे ज्यादा है। कभी एक स्टूडियो से शुरुआत करने वाले दूरदर्शन के आज 66 स्टूडियो और 35 चैनल हैं जो विविध क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दर्शकों को देश-दुनिया की खबरों, जानकारियों और घटनाओं से चौबीसों घंटे रू-ब-रू कराते हैं। दूरदर्शन के विशाल नेटवर्क में अब छह राष्ट्रीय, 28 क्षेत्रीय और एक अंतर्राष्ट्रीय चैनल है।

–आईएएनएस

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