राष्ट्रपति का पद…पिता के जज्बात, जब अपनी बेटी-दामाद के हत्यारों की दया याचिका पर शंकर दयाल शर्मा को लेना पड़ा फैसला

नई दिल्ली, 18 अगस्त (आईएएनएस)। न्याय सर्वोपरि! ये शब्द कहने और सुनने में कितने आसान हैं, लेकिन असल जिंदगी में इसकी परिभाषा काफी अलग है। जितना बड़ा पद, उतनी बड़ी ताकत, मगर यही ताकत तब सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है, जब फैसला अपने जज्बातों को नजरअंदाज करके लेना हो। इन बातों का जिक्र हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि एक ऐसा ही पुराना किस्सा है, जो कलम की ताकत और एक पिता के जज्बात को बयां करता है।

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के एक ऐसे भी राष्ट्रपति रहे हैं, जिनके पास अपनी ही बेटी-दामाद के हत्यारों की मर्सी पिटीशन आई थी।

दरअसल, इस घटना की शुरुआत होती है इंदिरा गांधी की हत्या से। साल था 1984। देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ऑपरेशन ब्लू स्टार के कुछ महीने बाद ही उनके बॉडी गार्ड्स ने हत्या कर दी। तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद देशभर में सिख विरोधी दंगे भड़क उठे। इन दंगों को भड़काने में कई कांग्रेस नेताओं पर आरोप लगे। इनमें एक नाम शंकर दयाल शर्मा के दामाद ललित माकन का भी था।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 31 जुलाई 1985 को तीन आतंकियों हरजिंदर सिंह जिंदा, सुखदेव सिंह सूखा और रंजीत सिंह गिल कुकी ने ललित माकन और उनकी पत्नी गीतांजलि की गोली मारकर हत्या कर दी थी। जिस समय इस घटना को अंजाम दिया गया, उस वक्त शंकर दयाल शर्मा आंध्र प्रदेश के राज्यपाल थे। बाद में हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सूखा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था।

बेटी और दामाद की हत्या के सात साल बाद, 25 जुलाई 1992 को शंकर दयाल शर्मा भारत के नौवें राष्ट्रपति बने। वह 25 जुलाई 1997 तक इस पद पर कार्यरत रहे। राष्ट्रपति बनते ही उनके पास एक दया याचिका आई। विडंबना यह थी कि यह याचिका उनके बेटी और दामाद के हत्यारों को फांसी से बचाने के लिए थी। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि देश के प्रथम नागरिक को इस पर फैसला लेना था। एक पिता के तौर पर यह भावुक करने वाला क्षण था और एक राष्ट्रपति के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी।

आखिरकार फैसला लिया गया। मीडिया में यह फैसला काफी चर्चित भी रहा। राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने हरजिंदर सिंह जिंदा और सुखदेव सिंह सूखा की दया याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद 9 अक्टूबर 1992 को ललित माकन और गीतांजलि के हत्यारों को पुणे की यरवदा जेल में फांसी दे दी गई।

बताया जाता है कि शंकर दयाल शर्मा को राष्ट्रपति से पहले प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया गया था। दरअसल, 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई थी। इसके बाद तत्कालीन उप राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाया गया था। लेकिन, बाद में उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद पीवी नरसिम्हा राव देश के नए प्रधानमंत्री बने थे।

अपनी सादगी के लिए मशहूर शंकर दयाल शर्मा का जन्म 19 अगस्त 1918 को भोपाल में हुआ था। वह राजनीति में आने से पहले भोपाल विश्वविद्यालय में कानून के प्रोफेसर थे। वह तीन बार मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए और 1956 से 1957 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे।

1971 में वह लोकसभा के लिए चुने गए और 1974 से 1977 तक संचार मंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने केंद्र सरकार में मानव संसाधन विकास मंत्री और शिक्षा मंत्री का पद भी संभाला। 1984 में शंकर दयाल शर्मा भारत के आठवें उपराष्ट्रपति चुने गए और 1992 में भारत के राष्ट्रपति चुने जाने तक दो कार्यकाल तक इस पद पर रहे। डॉ. शंकर दयाल शर्मा का निधन 26 दिसंबर, 1999 को हुआ था।

–आईएएनएस

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